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उसका दोष क्या है भाग - 16,17,18,19,20 15 पार्ट सीरीज

   

 उसका दोष क्या है (भाग-16)

            कहानी अब तक
अपनी मेडिकल रिपोर्ट और डॉक्टर की जांच के बाद विद्या को समझ आ गया था, रमेश एक साजिश के अन्तर्गत सोच समझकर उसे प्रतिदिन गर्भ निरोधक दे रहा है, जिससे कि वह माँ न बन सके l
                अब आगे
विद्या समझ नहीं पा रही थी, आगे क्या करे l यदि यह सारी बातें वह अपने मायके में बताती है तो इसमें भी उसी की  बेज्जती होगी,आखिर रमेश उसका प्यार था l इन दोनों का प्रेम विवाह था l और इस विवाह के लिए रमेश के प्रस्ताव के वह बाद खुशी-खुशी तैयार हुई थी l उसके पहले माता-पिता और भाइयों के द्वारा मिले सभी प्रस्ताव उसने ठुकरा दिए थे l अब किस मुंह से यह सारी बातें अपने मायके में बतलाये l
  फिर भी उसे एक बच्चा तो चाहिये, तो  क्यों ना एक बच्चा गोद लिया जाए l
  वह बच्चा गोद लेने के लिए निर्मल हृदय  संस्थान पहुंची l वहाँ की संचालिका ने पति-पत्नी दोनों को आने के लिए कहा | दोनों के सम्मिलित हस्ताक्षर से ही गोद लेने की प्रक्रिया कर सकती थी वह | और कई संस्थानों में भी उसने पता किया, प्रत्येक स्थान पर उसे पति के साथ आने के लिए कहा गया | अब वह परेशान हो चुकी थी | भला रमेश क्यों चाहेंगे बच्चा गोद लेना, फिर भी उसने रमेश से बात करने की सोची l
रात को रमेश के आने के बाद बहुत प्यार से रमेश से बात करते हुए कहा -
    "मैं एक बच्चा गोद लेना चाहती हूं, आशा करती हूं आप मेरी इसमें सहायता  करेंगे"|
     रमेश   -   "तुम्हें बच्चा गोद लेने की आवश्यकता क्या है, क्या घर में बच्चे नहीं है"?
   विद्या  -    हैं परंतु वह तो हमेशा अपनी मां के साथ कभी गाँव और कभी ननिहाल रहते हैं, मेरे पास  कहां रह पाते हैं l और जब रहते भी हैं तब मेरी तरफ आते भी नहीं, इसलिए मैं गोद लेना चाहती हूं, जिस पर सिर्फ मेरा अधिकार रहेगा; वह मेरा बच्चा होगा"|
रमेश सुनकर खामोश रह गया परंतु अगले दिन उसने समाधान उसके सामने  रख दिया  -   "बड़े दोनों बच्चे संगीता के पास रहेंगे और छोटे बेटी-बेटे को तुम ले लो"|
   विद्या  -   वह तो संगीता का बच्चा है मैं उसे क्यों लूँ ?
  रमेश -   "तुम कहीं से भी बच्चा लोगी वह पराया ही होगा तुम्हारा अपना तो होगा नहीं l यह भी पता नहीं किस कुल खानदान का होगा, इसके सम्ब्न्ध में यह तो  पता है कि यह इसी परिवार का है, मेरा है तो इसपर तुम्हारा भी उतना ही अधिकार है"|
   विद्या -   "क्या उस बच्चे पर मेरा पूरा अधिकार होगा, मां का दूध पीता है, संगीता उसे मेरे पास कैसे छोड़ेगी"?
     रमेश  -   "संगीता छोड़ देगी, अब इतना छोटा भी नहीं है कि माँ के दूध के बिना रह नहीं सके l गाय का दूध पिला कर पाल सकती हो तुम उसे"|
    विद्या  -   "संगीता से कहें यह बात संगीता स्वयं मुझसे कहे, तब मैं मान लूंगी | चलो मैं भी तुम्हारे साथ गांव चलती हूं, और वहां मैं स्वयं संगीता से बात करूंगी"|
  रमेश  -   "कहां परेशान होने जाओगी गांव में, संगीता को ले आऊंगा मैं, तुम बात कर लेना"|
अगले दिन रमेश शाम को संगीता को लेकर आ गया, छोटी बेटी और सबसे छोटा बेटा साथ में थे l विद्या के पूछने पर अपना बच्चा देने के लिए तैयार हो गई वह l अगले दिन ही शपथ पत्र के माध्यम से गोद लेने की कार्यवाही कर ली गई l
जाते समय संगीता पलट पलट कर अपने बेटे और बेटी दोनों को देख रही थी l
  विद्या  -  "संगीता मैंने तो सिर्फ तुम्हारे बेटे को गोद लिया है, तुम अपनी बेटी को ले जाओ l मेरे लिए एक बच्चा काफी है"|
   रमेश -   "नहीं विद्या अभी बाबू बहुत छोटा है, तुम्हें पहचानता भी नहीं है तो कम से कम अपनी बहन को देखकर खुश रहेगा, और वह उसकी देखभाल भी कर  लेगी जब तुम स्कूल रहोगी"|
  विद्या  -  "नहीं मैं अपने बेटे को अपने साथ ही स्कूल ले कर जाऊंगी, उसे घर में नहीं छोड़ सकती"|
रमेश  -   "तब तुम वहां पर पढ़ाओगी कैसे"?
  विद्या  -   "इसकी आप चिंता ना करें, मैं सारी व्यवस्था कर लूँगी, बस आप दो दिन इसका ध्यान रखें"|
  रमेश -   "एक-दो दिन संगीता को भी रोक लेता हूं, यह ध्यान रख लेगी, उसके बाद  जब तुम व्यवस्था कर लोगी, संगीता चली जायेगी"|
  विद्या ने अगले दिन स्कूल में वहां की स्थानीय शिक्षिकाओं से एक आया दिन भर के लिए तलाशने के लिए कहा संयोगवश उसे अगले दिन ही आया मिल गई l उससे उसने तय कर लिया वह सुबह आकर बच्चे को संभाल लेगी बस स्टैंड से ही और शाम को विद्या को बस में चढ़ा कर तब घर वापस जाएगी l
ऐसा ही होना प्रारंभ हो गया l घर की नौकरानी के सहयोग से घर में देख लेती बच्चे को और दिन भर स्कूल में आया नौमी संभालती थी बच्चे को l अब लगा विद्या का जीवन थोड़ा और शांति से व्यतीत हो जायेगा, लेकिन इधर एक नई समस्या सिर उठाने लगी थी l
  बाबू की बड़ी बहन प्रिया जो लगभग पाँच वर्ष की थी l विद्या के नहीं चाहने पर भी रमेश ने उसे बाबू को सम्भालने के  नाम पर रख लिया था और स्थानीय अच्छे विद्यालय में नामांकण करवा दिया था l 
प्रिया बाबू के प्रत्येक काम में हस्तक्षेप करती  -   "माँ इसे ऐसे दूध देती थी, माँ ऐसे खिलाती थी, मां वैसे रखती थी, तुम ऐसा क्यों कर रही हो"|
इतना ही नहीं वह विद्या की जीवन में भी बहुत हस्तक्षेप करती | हर बात में कहती  -    "तुम ऐसे कर रही हो मैं माँ से कह दूंगी, मैं पापा से कह दूंगी"|
  अक्सर उसको और उसकी बातों को लेकर विद्या और रमेश के बीच लड़ाई हो जाती l अब माँ या बाबा दोनों में एक घर में रहते बच्चों की देखभाल के लिये l वे भी प्रिया को उसके इस व्यवहार के लिये मना नहीं करते l
   प्रिया विद्या के घर से निकलने के बाद स्कूल जाती थी, और विद्या के वापस आने के पहले ही स्कूल से आ जाती है l इसलिए विद्या को हमेशा घर में ही मिलती थी l इसलिये वह विद्या पर पूरी निगरानी रखती साथ ही कहती -  " मुझे कितने छोटे स्कूल में पढ़ा रही हो, मैं तो रांची के बड़े स्कूल में पढ़ती थी दीदी और भैया के  साथ l एक दिन पूछ लिया विद्या ने -  
    विद्या -   "तुम रांची के बड़े स्कूल में कब पढ़ने लगी, तुम तो गांव में पढ़ती थी"|
   प्रिया  -   "नहीं मैं गांव में कभी नहीं पढ़ी l हमेशा रांची में पढ़ी हूं"|
  विद्या  -     "गांव से आकर"?
   प्रिया -   "नहीं मैं तो रांची ही रहती हूं l मां भी तो रांची रहती है"|
  इस तरह विद्या को संगीता के प्रारंभ से ही रांची रहने के बात की पूरी जानकारी मिल गई | संगीता कभी गांव गई ही नहीं, थोड़े दिन के लिए सिर्फ विद्या को अतिथि कक्ष में प्रतिस्थापित करने के लिए ही यहां आई थी; वरना वह लगातार रांची ही रह रही थी l और एक बार फिर विद्या और  और रमेश की लड़ाई हो गई l उसने रमेश से पूछ दिया -   "तुम मेरी सारी सैलरी मकान की किश्त देने के लिए ले ले रहे हो, बस नाम मात्र का पैसा मेरे पास मेरे आने जाने के किराया और व्यक्तिगत खर्च के लिए बचता है l यह कहकर लेते हो कि खर्चा अधिक है और दुकान से इतनी आय नहीं होती, परंतु संगीता को अलग मकान में रखने में, पूरी व्यवस्था अलग से करने में, क्या फालतू खर्चा नहीं होता है ? तुम अपना पैसा उस पर खर्चा कर रहे हो, और मेरा भी ले ले रहे हो घर गृहस्थी के लिए"|
   रमेश  -   मैं क्या करता विद्या संगीता यहां रहने के लिए तैयार नहीं हो रही थी"|
   विद्या -   "क्यों अब तो घर की मालकिन हो गई थी, मुझे अतिथि बना कर | अब क्या परेशानी थी उसे"?
  रमेश  -   "वो क्या है विद्या, मैं कुछ नहीं कर सकता; संगीता बिल्कुल तैयार नहीं है यहां रहने के लिए"|
   विद्या  -   "नहीं अब और फालतू खर्चा मैं सहन नहीं कर सकती l अभी संगीता को फोन करो मेरे सामने, बोलो उसे यहां आकर रहने के लिए"|
  उसने फोन उठाकर रमेश को पकड़वा दिया, परंतु रमेश ने फोन नहीं लगाया l चिढ़ कर विद्या ने स्वयं ही संगीता का फोन लगाया और रमेश को देकर कहा -
    " लो बोलो संगीता को यहां आने के लिए"|
रमेश अब भी बोलने से कतरा रहा था, तब विद्या ने स्वयं ही फोन में कहना शुरू किया  -   "हेलो संगीता, इतना बड़ा मकान होते हुए तुम भाड़े के मकान में क्यों रह रही हो, फालतू खर्चा हो रहा है दो जगह का | तुम्हें पता है कि रमेश की आमदनी कितनी है, इसलिए रुपये बर्बाद मत करो l तुम आकर यहां रहो"|
   संगीता -   "नहीं विद्या मैं वहां जा कर नहीं रह सकती"|
विद्या -   "आखिर क्यों"?
    संगीता  -   "क्योंकि बच्चे अब बड़े हो रहे हैं, और तुम्हें देखकर वे कई ऐसे सवाल करते हैं तुम्हारे विषय में जिसका  जवाब देना मुश्किल हो जाता है मुझे l मैं बहुत पछता रही हूं कुछ दिन तुम्हारे साथ वहां रहकर l वहां रहने के कारण रिया के मस्तिष्क पर बहुत बुरा असर पड़ा है और वह बार-बार तुमसे हमारा रिश्ता पूछ रही है l किसी के पिता की दो पत्नियां नहीं होतीं, बताओ मैं कैसे कहूं उसे कि तुम उसके पिता की दूसरी पत्नी हो ? विद्या तुम जानती हो समाज में दूसरी पत्नी की कोई इज्जत नहीं होती, और समाज उसे किस दृष्टि से देखता है......."
   विद्या  -    "खबरदार संगीता जो तुमने एक शब्द भी गलत निकाला | दूसरी तुम हो - मैं नहीं l मैं तो पहले ही रमेश के जीवन में आई थी, मगर माता-पिता की इच्छा का सम्मान करते हुए उन्होंने तुमसे  विवाह किया l परन्तु उनका पहला और अंतिम प्यार तो मैं ही हूं"|
    संगीता -   "तुम पहला प्यार होगी, परंतु पत्नी तो तुम दूसरी ही हो, जिसकी हमारे समाज में - और ना ही कानून में कोई मान्यता है | समाज और कानून की दृष्टि में तुम उनकी रक्षिता ही हो"|
कहते हुए संगीता ने फोन बंद कर दिया | हाथ में फोन पकड़े हुए आश्चर्यचकित विद्या संगीता के कहे शब्द मन ही मन  दुहराती रही l 
   "रक्षिता.....रक्षिता.....  रक्षिता... क्या मैं रक्षिता हूँ ? ओह कितना बड़ा धोखा हुआ है मेरे साथ l क्या मेरे धन के लिए रमेश ने दिखावे के लिए विवाह किया था मेरे साथ ? उसके दिल में चोर था, तभी तो  विवाह में भी कितने कम लोग आए थे l साधारण तरीके से विवाह हो गया था l  हाँ यही कारण रहा होगा जो रमेश उसे गर्भधारण नहीं करने दे रहा था l कितने बड़े धोखे में जी रही थी मैं"l 
विद्या दु:खी हो गई परंतु फिर भी उसने हिम्मत का दामन नहीं छोड़ा | अब तो उसके साथ उसका बेटा भी है, इसे अपने तरीके से पालेगी | स्नेह और दुलार देगी, अपने संस्कार देगी, यह उसका अपना बेटा होगा l यह सब सोचकर विद्या अपने मन को धीरज देती, बच्चे के पालन पोषण में लगी रही | बच्चे के साथ दिन व्यतीत होते रहे, बच्चा बड़ा होता रहा |  3 वर्ष का होने पर पास के विद्यालय में उसने बाबू का नामांकन करवा दिया l बाबू स्कूल जाने लगा उसकी दीदी उसे स्कूल छोड़कर अपने स्कूल चली जाती, और आते समय नौकरानी उसे ले आती थी, क्योंकि प्रिया का स्कूल देर से  छूटता था l अब बाबू 5 वर्ष का होने को था l
    उसका जन्मदिन आने वाला था, उसकी तैयारी के लिए बाजार जाना था;  इसलिए वह स्कूल से समय से पहले ही आ गई थी | रमेश को फोन किया था  अपने साथ बाजार ले जाने के लिए, जिससे बाबू के लिए कपड़े और खिलौने खरीद सके l बाबू की बहन के लिए भी उसने सोचा था, कुछ कुछ लेगी | इसलिये वह स्कूल से आधे दिन का अवकाश लेकर घर आ गई जिससे स्वयं भी फ्रेश हो और दोनों बच्चों को भी तैयार कर सके बाजार जाने के लिये l
  उसने देखा बाबू और प्रिया घर के बाहर बरामदे में बैठे खेल रहे थे और बातें कर रहे थे l प्रिया बाबू को अपने से चिपकाए कह रही थी -   "ना बाबू ना रोना नहीं, कुछ दिन में हम मां के पास चले जाएंगे | बस थोड़े दिन और हमें रहना है इनके पास l तुम्हें पता है ना मां की तबीयत बहुत खराब है, वह तुम्हें संभाल नहीं पा रही थीं, इसलिए पापा तुम्हें यहां लेकर आए; क्योंकि मां को अधिकतर डॉक्टर के पास जाना पड़ता था | इसलिए तो मैं तुम्हारे साथ आ गई यहां, जिससे तुम्हें कोई परेशानी नहीं हो l अब माँ हमें जल्दी बुलायेगी, माँ ने कहा है | पापा ने भी कहा हम जल्दी जायेंगे माँ के पास,इसलिए रो मत मेरे भाई"|
  उनके पीछे खड़ी विद्या यह सबकुछ सुनकर सन्नाटे में आ गई l हर पल उसके साथ साजिश हुई l बच्चे को देने में भी साजिश l क्योंकि संगीता बीमार रहती थी इसलिए बाबू मुझे मिल गया, बाबू की मां नहीं सिर्फ आया हूँ मैं उसके माता-पिता की दृष्टि में l इसीलिए बहुत कहने के बाद भी कचहरी से कागज नहीं बनवाया गया, सिर्फ स्टांप लगा पेपर में लिख कर शपथ पत्र के माध्यम से हो गया l उस शपथ पत्र    का पंजीकरण भी नहीं करवाया था l पंजीकरण के लिये कहने पर रमेश ने हँसकर कहा था -  " तुम भी कितनी शक्की हो विद्या, अरे स्टाम्प पेपर पर लिखकर तो दिया अब क्या चाहिये l वैसे भी बाबू तुम्हारे पास रहेगा तो माँ तो तुम्हीं होगी"|
और विद्या फिर खामोश रह गई थी l एक बार फिर छली गई वह l इस शपथ पत्र की कोई मान्यता नहीं है, उसकी भावनाओं से फिर खिलवाड़ किया गया है l उस समय विद्या की बुद्धि को क्या हो गया था, क्यों इतना नहीं सोचा - शपथ पत्र की कोई मान्यता नहीं है, जबकि वह इस बात को भलीभांति जानती है; आज नहीं बहुत पहले से | विद्या अपना सिर  थामे बैठी थी |
    "क्या हो गया, तबीयत खराब है क्या ?  आज आराम कर लो बाजार दूसरे दिन चले जाएंगे" -   रमेश आ चुके थे |
   "नहीं मैं ठीक हूं, चलो मैं तैयार हूं बाजार जाने के लिए"|
   रमेश  -   "अरे ऐसे ही, तुम्हारे चेहरे पर हवाइयां उड़ रही हैं सूखा-सूखा लग रहा है, चल कर थोड़ा फ्रेश हो जाओ, चाय वाय पी लो फिर चलेंगे"|
विद्या  -   "नहीं मैं चलने के लिए तैयार हूं, और चाय हम संगीता के हाथ का पिएंगे | अब तुम यह मत कहना संगीता गांव में है, मुझे पता है वह कभी गांव नहीं गई l बाबा और माँ भी यहीं उसकी देखभाल को जाते हैं l वह मायके और गांव के नाम पर यहीं रह रही है l यह बात तो उसने भी एक बार मुझे बताया है, वह बच्चे के कारण अलग रहती है l इसलिए अब कोई और नया बहाना मत करना, अब चलो भी"|
वह दोनों बच्चों को लेकर गाड़ी में जा बैठी l रमेश थोड़ी देर उसका चेहरा देखता रहा, फिर वह भी चुपचाप आकर गाड़ी में बैठ गया और गाड़ी घुमा कर रांची की दिशा में ले चला l
संगीता के घर आने के बाद अचानक उसने संगीता से पूछ दिया -   
    "संगीता तुम्हें क्या हो गया था जो तुम डॉक्टर पास जाती थी"?
  अचानक पूछे गए सवाल पर संगीता घबड़ा गई और उसके मुंह से निकल गया -   "मुझे टी बी हो गया था, परंतु अब ठीक हो गया है | पिछले 6 महीनो से डॉक्टर के पास एक बार भी नहीं गई, फिर तुमने मुझे कहाँ देखा, तुमसे किसने कहा, कि मैं डॉक्टर के पास जा रही थी"?
  विद्या -   "ओह तो यह बात है, तुम पिछले 6 माह से पूरी तरह स्वस्थ हो इसलिए अपने बेटे को ले आने की तैयारी कर रही थी l और यह सूचना तुमने अपनी बेटी के माध्यम से बेटे तक भी पहुंचा दी l तुम्हें किसी तरह का नाटक करने की अब कोई आवश्यकता नहीं होगी, लो संभालो अपने बेटे को, अब आया के पास रखने की आवश्यकता नहीं है इसे"|
संगीता ने बिना कुछ बोले बेटे का हाथ पकड़ उसे अपने सीने से लगा लिया और उसकी आंखों से आंसू की कुछ बूंदें टपक पड़ीं l अब विद्या वहां से पलट चुकी थी वापसी के लिए l उसने किसी को एक बार भी रुक कर देखने का प्रयास नहीं किया, और बाहर निकल गई | एक बार फिर वह छली गई थी l रमेश उसके पीछे पीछे भाग कर आया, परंतु उसने रमेश  की पुकार का भी कोई प्रत्युत्तर नहीं दिया!



    कथा जारी है!


                                      क्रमशः
    निर्मला कर्ण

      

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3 Comments

hema mohril

02-Jul-2023 12:39 PM

Awesome story mam

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वानी

15-Jun-2023 10:31 AM

बहुत खूब

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Abhinav ji

15-Jun-2023 07:59 AM

Saare part ek saath . Very nice mam

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